क्यू नही हम कुछ लिखते है अपने मन के बिचारों से। क्यू नही हम पूछते है अपने दिल की गलियारों से। हे मन्दिर,हे मस्जिद,हे वाहे गुरु,खलिफाओ क्यू नही हम छुट जाते अपने तुच्छ व्योहारो से। अंश-वंश,जाती-धरम इनमे उलझा ही रहता हू मै क्यू नही कुछ सीखता हू कबीर रुपी कुम्हारों से। काशी,मथुरा,मक्का-मदीना सबका मतलब जब एक है क्यू हमेशा हम लड़ते रहते है अपने वाणी के बाणो से। इन्सान तो है कभी इन्सानो की तरह न जीना आया हमे क्यू नही हम कुछ पढ़ते है अपने रंग-बहारों से। समझा क्यू नहीं देते "आलोक" तुम सत्ताधारी रहनुमओ को नही चल पायेगा अपना भारत एकतरफा अखबारों से। राम नाम पर ओ ज्ञान सुनाते है जो दिन-दिन भर रामायण का पाठ सुनो "सोनकर" तुम इन छोटी सरकारो से। aaj kal jo ham hai