अमावस जैसी आज की रात है नही करनी किसी से अब बात है बहुत देख ली अपना बनाकर सबको इस्तेमाल किया मोहरा बनाकर हमको हर किसी ने मेरे जज्बात से खेला लगा दिया जरूरत पड़ने पर मेला अब किसे अपना कहकर पुकारू अब किससे दिल का बोझ उतारु हर किसी ने बखूबी पहचाना मुझे देख माटी का देह सबने बखाना मुझे फिर बनाकर कठपुतली नचाया मुझे मेरा ही होने से सबने बेशक बचाया सभी के इर्द गिर्द रहकर झूठी मुस्कान बिखेरी फिर खुद में ही सिमट कर आज दर्द को उकेरी अरे! बताओ अब कौन बचा है मेरे भावनाओं को ख़ाक में करने वाला मेरे बचे खुचे अस्तित्व दबोचने वाला अरे!अगर अब कोई है भी तो अब खबरदार हो जाओ अपने ही भावों को तोलो और असरदार हो जाओ क्यो कि अब मैं खत्म हो चुकी हूँ पूरी तरह से बस जी रही हूं बस कुछ वजह से चंद अल्फ़ाज है मेरे खुद अपने लिए जिसे बटोर लूँ आँचल से अधूरे सपनो के लिए।। अंजली श्रीवास्तव