बा-वफ़ा वाबस्तगी तू ये मेरी क्यों समझ नहीं पाया दूरी ये बेवज़ह सी मैं तिरी सनम क्यों समझ नहीं पाया आरज़ू जो थी तेरी आग़ोश में ही तमाम ज़ीस्त गुज़रे फिर संगदिल तू क्यों मुझे बीच मझधार में ही छोड़ आया शोर-ए-रुस्वाई-ए-दिल का हाल किस किस को बताऊँ शिद्दत-ए-तिश्नगी मेरे दिल की तू क्यों समझ नहीं पाया लबरेज़ इश्क़ के दरिया को सुखा दिया तेरी नफ़रतों ने क्यों अँधेरी रातों में तू चराग़ तमन्नाओं के बुझा आया 'सफऱ' जो हो गया था क़ाफ़िला मुहब्बत का ये तेरा मेरा फिर किस डर से तू मंज़िल के इतने क़रीब से लौट आया बा-वफ़ा- faithful वाबस्तगी- संबद्ध शोर-ए-रुस्वाई-ए-दिल- sound of humiliation of heart इस ग़ज़ल प्रतियोगिता का शीर्षक है " दूरी" गजल प्रतियोगिता -02 साहित्य कक्ष 2.0