बरसो बरसो मेघा बरसो बरसे नहीं हो आज तक। एक बूंद तेरी मेरी प्यास थी जो मिली नहीं है आज तक।। देखो कितना क्रूर है सूरज जो धरती को झुलसा ये। तुम नहीं समझे सोचो अपनी पीड़ा किसको बताये।। पिता तुल्य हो दया करो अब कलियां झुलसी जाये। रोए किसान देखे जो ऐसे अपनी फसलों के हाल तक। बरसो बरसो मेघा बरसो बरसे नहीं हो आज तक।। नदी और तालाब बगीचे खेत और खलिहान हैं सूखे। देखो बच्चे खाते कैसे? हैं किसान के रूखे सूखे॥ देखो अब इन बच्चों के तुम वह बड़े भाई सरीखे। देखो तेरे बिन रवि कैसे ले गया धरती का श्रृंगार तक॥ बरसो बरसो मेघा बरसो बरसे नहीं हो आज तक।। पानी में अठखेलियां भूले दुबके बैठे घरों में। पशु-पक्षी तक है बेहाल जान नहीं है पैरों में॥ सबको है विश्वास तुम ही में आएंगे देवराज अब। जल्दी आओ जल्दी आओ हम थाल सजाए आज तक।। बरसो बरसो मेघा बरसो बरसे नहीं हो आज तक। बरसो बरसो मेघा बरसो