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बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था खेल निराले

बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था 
खेल निराले  जब हम खेला करते, माँ संग अठखेलियाँ जब हम किया करते
रहता समय का भी ना ख्याल जब हमें था
बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था 

लुका छुपी, विष-अमृत, पकडम-पकडाई के खेल और केरम 
जब होता फेवरेट अपना था
वो मौज मस्ती  के दिन जो बिताए हमने संग  दिल
उसे कैसे मैं भुला दूँ बस अब यही सवाल अपना था
बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था    
                                                          - नीलम कपूर
                             ©geet_acollectionofpoems Lockdown has some benefits too
Read this poem written by my mom and enjoy those topsy turvy memories of your childhood
#Bachpan😍
बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था 
खेल निराले  जब हम खेला करते, माँ संग अठखेलियाँ जब हम किया करते
रहता समय का भी ना ख्याल जब हमें था
बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था 

लुका छुपी, विष-अमृत, पकडम-पकडाई के खेल और केरम 
जब होता फेवरेट अपना था
वो मौज मस्ती  के दिन जो बिताए हमने संग  दिल
उसे कैसे मैं भुला दूँ बस अब यही सवाल अपना था
बचपन जो अपना था, जो बीत गया वो सपना था    
                                                          - नीलम कपूर
                             ©geet_acollectionofpoems Lockdown has some benefits too
Read this poem written by my mom and enjoy those topsy turvy memories of your childhood
#Bachpan😍