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आज फिर तुम्हारी याद आई आज फिर पुरानी डायरी उठाई

आज फिर तुम्हारी याद आई 
आज फिर पुरानी डायरी उठाई 
पन्ने पलटे जिंदगी के
समेटे हजारों यादें बीते हुए कल के 
कैसे छुप छुप कर मुलाकातें होती थीं 
नादानियों से भरी हमारी बातें होती थीं 
घंटों बिताते थे हम बागों में 
लिए हाथ तुम्हारा इन हाथों में 
अपने कल के सपने बुना करते थें
हमसफर तुम्हीं बनोगे मेरे
बस तुमसे यही सुना करते थे 
वो भी क्या जमाना लगता था 
तुम्हारा एक गुलाब का फूल 
खजाना लगता था 
कितना हसीन था वो एहसास 
प्यार से भी प्यारा तुम्हारा और मेरा साथ
अधूरा ही रह गया सारा खाब
मसला परिवार का था 
सो दे ना सकें तुम्हें बेवफाई का दाग
चुभतें हैं आज भी तुम्हारी यादों के शूल 
आज भी है मेरी डायरी में 
तुम्हारा वो गुलाब का फूल

©Garima Srivastava
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