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मेरी ढलती ज़िन्दगी के तमस को दूर करते, उजियारे के

 मेरी ढलती ज़िन्दगी के तमस को दूर करते,
उजियारे के ख़ूबसूरत सवेरे हो तुम..!

खिलती है मुरझाई ज़िन्दगी तुमसे,
एक बार कहो मेरे हो तुम..!

कोई नहीं तुम सा इस जहाँ में जानम,
बंजर दिल की जमीं को बादलों सा घेरे हो तुम..!

नहीं जरुरत किसी और के साथ की मुझे,
मेरे लिए एकलौते भतेरे हो तुम..!

जन्नत होती ज़िन्दगी जिससे,
पूरी होती मानो मन्नत यूँ ही..!

ज़माने की जद्दोज़हद से परे,
खुशियों के ख़ुशनुमा डेरे हो तुम..!

©SHIVA KANT
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