#नजफगढ़_का_अनपढ़ मैं तो हूं आज भी अनपढ़, जो जा-जा कर नजफगढ़ मांगा करता हूं मन्नत कि मिल जाए जन्नत मगर म्हारे मन की मुराद बनकर रह जाती है याद तो कविता आ जाती है करने को दर्द से आज़ाद जब सर्दी का सफ़ेद सूरज सुस्त लगने लगता है जब जिगर हो दूर देर तम तक जगने लगता है जब कठिन कार्य या कठोर परिश्रम के बदले मिलता महज़ तम का ग़म। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #नजफगढ़_का_अनपढ़ मैं तो हूं आज भी अनपढ़, जो जा-जा कर नजफगढ़ मांगा करता हूं मन्नत कि मिल जाए जन्नत मगर म्हारे मन की मुराद बनकर रह जाती है याद तो कविता आ जाती है