कभी ज्यादा, कभी कम रहा मेरा ग़म मेरे संग हरदम रह



कभी ज्यादा, कभी कम रहा
मेरा ग़म
मेरे संग हरदम रहा

कभी ख़त्म न हुए 
दिन और रात के शिकवे
देखो इस साल भी मौसम नम रहा

न जाने उन आंखों में ऐसा क्या था
एक अजनबी के जाने का रंज
मुझे हरदम रहा

मुझसे अब बातें नहीं करतीं ये उदास रातें
नया दर्द ही
हर बार मेरा मरहम रहा... 
© trehan abhishek





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कभी ज्यादा, कभी कम रहा
मेरा ग़म
मेरे संग हरदम रहा

कभी ख़त्म न हुए 
दिन और रात के शिकवे
देखो इस साल भी मौसम नम रहा

न जाने उन आंखों में ऐसा क्या था
एक अजनबी के जाने का रंज
मुझे हरदम रहा

मुझसे अब बातें नहीं करतीं ये उदास रातें
नया दर्द ही
हर बार मेरा मरहम रहा... 
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