इक ना-मुक़म्मल दास्तां - भाग: प्रथम (अनुशिर्षक में पढ़े) उसे पहली बार इश्क़ हुआ था शायद। यूँ तो जाने कितनी बार हुआ था। पर था एकतरफा हर बार। होता भी क्यूँ ना। अजीब सा दिखता था वो। फूहड़ सा। बचपन से ही तोंद निकली हुई थी उसकी। बड़ी सी ऐनक लगाता था, साँवले से चेहरे पे। हाइट भी कुछ खास नहीं थी। चलता-फिरता बिन पैंदे का लोटा लगता था। और जब बोलता था, तो तुतला के बोलता था। 'र' को 'ल' का उच्चारण कर देता था। उसे तो पता भी नहीं चलता कब 'र' की 'ल' निकल गया उसके मुख से। वैसे तो सब कहते थे की दिल का बहुत अच्छा था वो। पर क्या दिल सब कुछ होता है? होता होगा, पर उसके लिये शायद नहीं था। क्यूँकी किसी ने उसका दिल देखा कहाँ। खैर, मुद्दे पे आते हैं। मुद्दों से भटकने की पूरानी बिमारी है मेरी। नज़र-अंदाज कर दिजियेगा। तो हुआ यूँ कि साहब को इश्क़ हुआ। हुआ भी किससे? इक परी से। वो परी जो शायद आसमां से उतरी थी। एकदम गोरी-चिट्टी, मलाई के रंग जैसी। काले लंबे घने बाल। तीखे-नैन नक्स़ और सूर्ख गुलाबी भरे से होंठ। हँसती थी तो गालों में गड्ढे पड़ जाते थे। चलती थी तो लगता था मद्धम हवा जैसे बह रही हो। जब बोलती थी तो लगता था मानो कोयल की मीठी आवाज़ में जैसे किसी ने जहां भर की मिश्री और शहद घोल दी हो। और जब वो नखरें दिखाये तो मानो मेनका की अदायें भी उसके आगे फींकी पड़ जाये। बस कुछ ऐसी थी उसकी 'जान'। हाँ 'जान'ही तो कह के बुलाता था उसे। और जान से ज्यादा शायद मोहब्बत भी करता था। इसिलिए तो उसके घर में उसकी जान के बारे में सबको पता था। माँ नाराज़ थी। होती भी क्यूँ ना? दूसरे जात की जो थी। माँ का धर्म ना भ्रष्ट हो जाता। पर वो तो अंधा था मोहब्बत में उसकी। मगर गलती भी क्या थी उसकी? पहली दफ़ा ज़िंदगी में उसे किसी ने सीने से लगाया था, किसी ने उससे एक दोस्त से ज्यादा मोहब्बत की थी। किसी ने सिर्फ उसका दिल देखा था। वो इस दुनिया की सबसे खुबसूरत लड़की थी उसके लिए, मगर उस लड़की के लिए वो ही उसका राजकुमार था, उसका सब कुछ था। फूला नहीं समाता था वो। चीख चीख कर दुनिया से कह देना चाहता था कि ओ इस दुनिया की सबसे खुबसूरत परी का हमसफ़र है। और उससे ज्यादा खुशकिस्मत इस दुनिया में कोई होगा नहीं। इश्क़ ही था शायद। पता नहीं। आज तक समझ नहीं पाया। इश्क़ था या उसके अहं की संतुष्टी। उसे कभी किसी ने प्यार नहीं किया। प्यार किया पर बस दोस्त की तरह। कोई इससे आगे बढ़ा ही नहीं। तो क्या ये लड़की जब आगे बढ़ी, तो इसने सिर्फ इसिलिए हाँ बोला कि क्या पता फिर कोई मिले ना मिले, या फिर इतनी खुबसूरत लड़की उससे कैसे प्यार कर सकती है और अगर करती है तो उसे आँख बंद करके हाँ बोल देनी चाहिए क्यूँकी ऐसी किस्मत उसे दुबारा तो नहीं मिलेगी। जब मन में अन्तर्द्वन्द चलता है तो समझ नहीं आता कि सही क्या है और गलत क्या। इश्क़ है या कुछ और। क्या करना चाहिए उसे। शायद वो इसका ज़वाब जानता था मगर मानने से इंकार कर रहा था। और इसी जद्दोज़हद में उसने उसे हाँ कर दिया था।