ज़ेबा है तू मेरी, तुझपे मैं अपनी जां निसार कर दूँ, आ बैठ तू मेरे पास, तुझे एक टक मैं देखता रहूँ। तेरे रू-ब-रू मैं होकर, अपना हाल-ए-दिल मैं बयां कर दूँ, तेरे दिल में बस जाऊँ मैं, तुझे अपने दिल में शामिल मैं कर दूँ। ***उम्दगी-उत्तमता ***सेवाबंदगी- पूजा 🌻लेखन संगी🌻 //ज़ेबा// "तिरे रूप के ख़ालीस उजाले को यूँ अपनी बंदगी की फ़ज़ा दूँ,