'केवल्य' स्वतंत्र मैं सभी विधाओं से बहाव लिए 'मैं'में बहता जा रहा था... तभी ज्ञान का पड़ाव आया मैं अकस्मात किनारे लग गया मुर्ख मैं; हँसता हुआ फँसता चला गया तेज के ठहराव में अब तय के विज्ञान और कर्म के अनिश्चय का धैर्य लिए बहक ही नहीं पता हूँ गुण से गुण की ओर यहाँ दूरियाँ ही नहीं है । विप्रणु ✒️ #kewalya#viprnu