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गुम है कही वो आखें , जिन्हे में ढूंढ़ रही हूं । द

गुम है कही वो आखें ,
जिन्हे में ढूंढ़ रही हूं  ।
दर बदर
बीते कई दिन और राते ,
सुबह ना आई ।
फिर
दर बदर
खामोशी भी इतनी गहरी है ।
    खामोशी भी इतनी गहरी है ।
दर बदर
नजर ना  आया  ।
फिर 
कोई किनारा
डुवे है ।
हम 
दर बदर
गुम है कही वो आखें ,
जिन्हे में ढूंढ रही हूं ।
दर बदर 
      दर बदर

©mahipreet
  #दर बदर#
prathvirahul1175

mahipreet

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#दर बदर# #Poetry

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