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निशाना-ए-खाक कर दो, सुलग तो बहुत चुके है हम। सुनो

निशाना-ए-खाक कर दो, 
सुलग तो बहुत चुके है हम।
सुनो बरबाद कर दो,
बहक तो बहुत चुके है हम।

शहर की चमक-धमक उजालों में,
तंगदिल जिंदा लाशें चलती है।
कांधे पर हाथ रख दो,
सहम तो बहुत गए है हम।

©Anu...Writes
  #शहर