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रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी। ज

रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी। ज़ालिम डायर ने जब खेली खूँख़ार खून की होली थी। गुमनाम शहीदों की गणना ख़ुद मौत न कर पाई होगी। निष्ठुरता भी चीखी होगी, निर्ममता चिल्लाई होगी।

©R. k. singh
  # जलियांवाला बाग हत्याकांड

# जलियांवाला बाग हत्याकांड #विचार

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