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बहुत हो चुकी चाय पर चर्चा, अब फिर से चर्चा की चाह

बहुत हो चुकी चाय पर चर्चा, अब फिर से चर्चा  की चाह ।
"मंहगाई" उपयुक्त विषय है ,जनता इससे रही कराह ।
 ग्यारह सौ का हुआ सिलैण्डर, सब्जीमण्डी लूट मचाय ।
बिजली बिल भी आँख तरेरे,फिर भी गूँज रही वाह-वाह।
असमज मे खङा है "पंकज",कौन सही है ,कौन गलत ?
 विचलित कुंठित हो जाता मन,सुनकर लाचारी की आह।
मैं क्या मुझ जैसे कितने हैं ,कोई कहे ,कोई चुप सह जाय।
किन्तु शांत स्तब्ध सा माहौल,अब सत्ता को करै आगाह।
नारों/स्लोगन से पटी दीवारें ,पेट रुदन पर ध्यान ना जाय ।
मुट्ठी भर की पों बारह है ,शेष की अभी नहीं परवाह ।
जागो ! चिर निद्र्रा से जागो, सुन लोगन को कान लगाय,
सबकी सोचो सब पर सोचो  ,छोङो लेना सब्र की थाह।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  मंहगाई पर चर्चा

मंहगाई पर चर्चा #कविता

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