शम्मा महफ़िल में जलती रहेगी तो सिर पतंगे उठाते रहेंगे। इश्क़ जिनको है अपने वतन से वो यूँ ही सिर कटाते रहेंगे। पहरेदारी में तत्पर खड़े हैं पहरुए बन संवर कर दीवाने। मातृभूमि की सेवा में अक़्सर भामाशाह फिर से आते रहेंगे। आँच आए जो मेरे वतन पे आग बन जाएगी तब जवानी। राणा लड़ते मिलेंगे समर में शस्त्रु मुह की ही खाते रहेंगे। ना झुकेगा कभी सिर हमारा ना लजायेंगे माता की ममता हम भगतसिंह की छाया बनेंगे ओर ऊधम बनाते रहेंगे। बनके डायर कभी कोई आए ऐसा दुस्साह ना हम सहेंगे। छलनी कर देंगे उसी वक़्त सीना दुश्मनों को मिटाते रहेंगे। अब लड़ाई तो बाकी है खुद से घर के घर में लुटेरे हुए हैं। बाक़ी उम्मीद हमको है पंछी' घोंसला भी बचाते रहेंगे। 🇨🇮 शम्मा महफ़िल में जलती रहेगी तो सिर पतंगे उठाते रहेंगे। इश्क़ जिनको है अपने वतन से वो यूँ ही सिर कटाते रहेंगे। पहरेदारी में तत्पर खड़े हैं पहरुए बन संवर कर दीवाने। मातृभूमि की सेवा में अक़्सर भामाशाह फिर से आते रहेंगे। आँच आए जो मेरे वतन पे आग बन जाएगी तब जवानी।