सुनो,
बातें, हाँ अब नही करता मन तुमसे बातें करने का,अब तो इस ह्रदय में अब तुम्हारी स्मृतियां भी अवशेष नही है। मगर फिर भी ना जाने क्यों तुमसे जुडा जब भी कोई किस्सा, मेरे सामने आता है तो, तुम्हारी तस्वीर जो इन नयनो की पुतलियो में विद्यमान है मेरे समक्ष बन जाती है,होली वाले दिन ही तो देखा था तुम्हे आखिरी बार, रंगो को खरीदती तुम आसमानी रंग की साडी में इंद्रधनुष सी प्रतीत हो रही थी।पता नही क्यों इंद्रधनुष बरसात के बाद ही नजर आता है, शायद हम किसी की खूबियों को उसके गुजर जाने के बाद ही समझ पाते है और कभी कभी हम अपने अहम में आकर सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने रहते है। जैसे तुम और मैं , शायद तुम्हें याद हो ,वो जब बीच चौराहे पर पहली बार ,तुमसे मेरी नजरे मिली थी। उस दिन मुझे नही पता था कि नजरो का मिलना, वास्तव में मिलने से ज्यादा महत्व रखता है परंतु हम समझ नही पाते कि कब नजरो का मिलना प्रेम का प्रतीक बन जाता है और कब घृणा का,मगर मुझे इस बात का गर्व है कि तुमसे मेरी नजरो का मिलना सिर्फ प्रेम का प्रतीक था और किसी वस्तु के प्रतीत और प्रतीक होने में प्रेम एक मुख्य आधार है
... #जलज कुमार