देश की अर्थव्यवस्था में, समाज की समस्या में, निदान और उन्नति के, अनुसंधान को न समझ पाये, धर्म जाति को न समझ पाये, देखते हैं यह राग, कब तक चलता है, देश प्रगति करता है।। लोकतंत्र में जाति, धर्म तय नहीं होता है, कोई धर्म बताता, कोई जाति कहता है, समाज विकास पर चले, तय कौन करता है।। व्ययताई सोच से, समाज का विकास नहीं होता, राजनीती के मजे में, कोई समाज का नहीं होता।। आप मजा लीजिये, मेरी बात का बेफिक्र हो, हमारा कुर्बान देश, वंदे मातरम् का मजा नहीं लेता।। छोटे सत्य पर, आदमी बात नहीं करता, बड़े झूठ पर, आदमी विकास नहीं होता।। कहां टिका है, जाति धर्म पर विकास, कहां बना है, आदि कर्म पर विशाल, दुर्भाग्य से देश बड़ा, कद छोटा रखता है, आदमी से बड़ा, आदमी नबाब होता है।। मेरी कोशिशें नाकाम हैं, समझाने की तरकीबों में, मेरी तो जुर्रतें नाकाम हैं, खुद समझ ले सत्ता तबीबों से, भ्रष्टाचार पर वार, हमारी लेखनी का होता है।। बाबा