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यूं ही बैठे-बैठे सोचती हूँ कभी काश ना कोई मंदिर ना

यूं ही बैठे-बैठे सोचती हूँ कभी काश ना कोई मंदिर ना कोई मस्जिद का शहर होता.......
बस वो जगह होता जहाँ इंसानों का उम्मीदों से रौशन हर सहर होता.........

ना ईद, रमजान सुबह की अजान तुम्हारी होती ना होली, दिवाली रातों के जगराते हमारे होते कोई हिन्दू कोई मुसलमान ना होता काश  दोस्ती प्यार त्योहारों का एक मौसम एक ही पहर होता..........

अल्लाह ईश्वर को बांटने की ज़िद से थक कर दो पल सुकुन से बैठने को काश सब के आँगन मे बेमजहबी टहनियों पर लदे इंसानियत के फूल का एक छोटा सा शजर होता..........

सहर -सुबह 
शजर - पेड #na_mandir_na_masjid
#Chanchal_mann #hindinojoto#poetry
यूं ही बैठे-बैठे सोचती हूँ कभी काश ना कोई मंदिर ना कोई मस्जिद का शहर होता.......
बस वो जगह होता जहाँ इंसानों का उम्मीदों से रौशन हर सहर होता.........

ना ईद, रमजान सुबह की अजान तुम्हारी होती ना होली, दिवाली रातों के जगराते हमारे होते कोई हिन्दू कोई मुसलमान ना होता काश  दोस्ती प्यार त्योहारों का एक मौसम एक ही पहर होता..........

अल्लाह ईश्वर को बांटने की ज़िद से थक कर दो पल सुकुन से बैठने को काश सब के आँगन मे बेमजहबी टहनियों पर लदे इंसानियत के फूल का एक छोटा सा शजर होता..........

सहर -सुबह 
शजर - पेड #na_mandir_na_masjid
#Chanchal_mann #hindinojoto#poetry