इन्हें कुल्हड़ न दिखाओ तुम्हे मालूम नहीं,कितने घाटों पर नहाते हैं बनारस वाले.... बाग़ की सैर तो है एक बहाना इनका,तितलियाँ ढूँढने जाते हैं बनारस वाले.. दिन में देते हैं हिदायत की सुधर जाओ मियां,रात में आके पिलाते हैं बनारस वाले... आसमान नाचने लगता है ज़मीन झूमने लगती है,ऐसी शहनाई बजाते हैं बनारस वाले... अपना किरदार बनाने में जुटे रहते हैं, यूँ तो साड़ी भी बनाते हैं बनारस वाले... - Rahat Indori ©मलंग #बनारस