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राजनीति के पहरेदारो, अधर्म के सहूकारो, अपनी गद्दी

राजनीति के पहरेदारो, अधर्म के सहूकारो,
अपनी गद्दी की चाह में तुमने, 
बुरे कामों की वाह में तुमने, 
ईमान कितना बेचा जाए, 
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए। 

राज-पाठ की परवाह में तुमने, 
वोटों के प्रवाह में तुमने, 
धनवीरों की नदी की  कलकल, 
आज नहीं तो और कभी कल, 
धन कितना दूना आए,
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए।

अपने आप को नेता कहते, 
पूर्वजों के कर्मों में तुम, 
कूडे की भाँति, नदी में बहते, 
और बताते जनता को तुम, 
प्रसाद कितना बाँटा जाए, 
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए।

©पण्डित सुन्दरम दुबे #rajneeti #poem #poem #Politics #neta #poetry_by_sundram
राजनीति के पहरेदारो, अधर्म के सहूकारो,
अपनी गद्दी की चाह में तुमने, 
बुरे कामों की वाह में तुमने, 
ईमान कितना बेचा जाए, 
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए। 

राज-पाठ की परवाह में तुमने, 
वोटों के प्रवाह में तुमने, 
धनवीरों की नदी की  कलकल, 
आज नहीं तो और कभी कल, 
धन कितना दूना आए,
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए।

अपने आप को नेता कहते, 
पूर्वजों के कर्मों में तुम, 
कूडे की भाँति, नदी में बहते, 
और बताते जनता को तुम, 
प्रसाद कितना बाँटा जाए, 
अधर्मी बता रहे हैं हमको, 
ईश्वर कितना पूजा जाए।

©पण्डित सुन्दरम दुबे #rajneeti #poem #poem #Politics #neta #poetry_by_sundram