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Alone चाक गिरेवां कर बैठे इश्क मे तेरे, आशिक़ी की

Alone  चाक गिरेवां कर बैठे इश्क मे तेरे,
आशिक़ी की भी हद होती है।
तू फिर भी बेरुखा ही रहा,
बेरुखी की भी हद होती है।।

सजदे किये दिन रात, तू फिर भी न पिघला
कितनी बंदगी करूँ, बंदगी की भी हद होती है।

करके बर्बाद मुझको कहते हो मुहब्बत है,
अमां बस करो दिल्लगी की भी हद होती है।



#vipinupadhyaya #alone #onlinepoetry #PoetryOnline
Alone  चाक गिरेवां कर बैठे इश्क मे तेरे,
आशिक़ी की भी हद होती है।
तू फिर भी बेरुखा ही रहा,
बेरुखी की भी हद होती है।।

सजदे किये दिन रात, तू फिर भी न पिघला
कितनी बंदगी करूँ, बंदगी की भी हद होती है।

करके बर्बाद मुझको कहते हो मुहब्बत है,
अमां बस करो दिल्लगी की भी हद होती है।



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