क़ातिल तो चले गए यह कौन कर रहा है मुझ पर कहर रे पर इन आंखों में तेरा पैकर ,रूह में उतरी एक अजब लहर रे। पैकर- ज़िस्म कोई समय निकालो जहां जाता हो ,आराम के लिए ठहर रे काश इस रमज की भी कोई होती दोपहर रे। जितना भी मर्जी रोक लो ,सदा ही होता इसका दहर रे नसों में धीरे-धीरे असर करता, ऐसा होता मोहब्बतें-ए-जहर रे। दहर- वक्त , हिम्मत सिंह writing #thinking# Punjabi poetry Hindi poetry# Urdu poetry#💓💓💓###💘💘💘###🎶🎶###✍️✍️###