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#OpenPoetry कर बखान विभिन्न घटनाओं का मैं ,अपना जी

#OpenPoetry कर बखान विभिन्न घटनाओं का मैं ,अपना जीवन वृत्तांत सुना रही ।
मां की तीसरी बेटी हूं मैं ,अपने बड़ों से उपेक्षित हुई ।
मां ने तराशा संस्कारों से ,बाबा के साएं में बड़ी हुई । 
पढ़ाई में जब लगन लगी मैं ,अपने स्तर से उठती रही ।
अपने जीवन की पहली जीत मैं ,जीवन भर के लिए संजोती रही ।
कद बड़ा , सम्मान बड़ा , अब मैं ,अपनी नज़रों में बड़ी हुई ।
जीवन के सबसे नाजुक पल में ,अब मैं प्रवेश थी कर रही ।
स्कूल बदला , साथी बदले ,पढ़ाई की लगन वहीं रही ।
भावुक बनी मैं , सच्ची बनी मैं ,फिर भी दूसरों के स्वार्थ में पिसती रही ।
मार्मिक हृदय सी काया लिए मैं ,क्षणभंगुर सी प्रतीत हुई ।
जब - जब टूटी दिल ही दिल से,सिसक - सिसक कर रह गई ।
कमजोर हुई , अपनों से थोड़ी दूर हुई ,पढ़ाई में फिर भी अव्वल रही ।
शिक्षा की लगन से पहचान पाई ,जब १२ वी में , मैं प्रथम आयी ।
नया उजाला मिला जीवन में , नए पड़ाव की ओर अग्रसर हुई ।
नाजुक पलों को पार कर मैं ,नासमझ से समझदार बनी।
मां - बाबा की उम्मीदों को लिए मैं ,रोज नए नए सपने बून रही ।
अपनी सोच को उत्कृष्ट मान मैं ,आत्मविश्वास की नाव पर सवार हुई ।
इसी आत्मविश्वास से मेरे जीवन में , कविता की उत्पत्ति हुई ।
होंसला , मेहनत का साथ लिए मैं ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही ।
नित-नए विचारों को आत्मसात कर मैं,अपने अंतर्मन के लक्ष्य को पहचान रही । #OpenPoetry
#OpenPoetry कर बखान विभिन्न घटनाओं का मैं ,अपना जीवन वृत्तांत सुना रही ।
मां की तीसरी बेटी हूं मैं ,अपने बड़ों से उपेक्षित हुई ।
मां ने तराशा संस्कारों से ,बाबा के साएं में बड़ी हुई । 
पढ़ाई में जब लगन लगी मैं ,अपने स्तर से उठती रही ।
अपने जीवन की पहली जीत मैं ,जीवन भर के लिए संजोती रही ।
कद बड़ा , सम्मान बड़ा , अब मैं ,अपनी नज़रों में बड़ी हुई ।
जीवन के सबसे नाजुक पल में ,अब मैं प्रवेश थी कर रही ।
स्कूल बदला , साथी बदले ,पढ़ाई की लगन वहीं रही ।
भावुक बनी मैं , सच्ची बनी मैं ,फिर भी दूसरों के स्वार्थ में पिसती रही ।
मार्मिक हृदय सी काया लिए मैं ,क्षणभंगुर सी प्रतीत हुई ।
जब - जब टूटी दिल ही दिल से,सिसक - सिसक कर रह गई ।
कमजोर हुई , अपनों से थोड़ी दूर हुई ,पढ़ाई में फिर भी अव्वल रही ।
शिक्षा की लगन से पहचान पाई ,जब १२ वी में , मैं प्रथम आयी ।
नया उजाला मिला जीवन में , नए पड़ाव की ओर अग्रसर हुई ।
नाजुक पलों को पार कर मैं ,नासमझ से समझदार बनी।
मां - बाबा की उम्मीदों को लिए मैं ,रोज नए नए सपने बून रही ।
अपनी सोच को उत्कृष्ट मान मैं ,आत्मविश्वास की नाव पर सवार हुई ।
इसी आत्मविश्वास से मेरे जीवन में , कविता की उत्पत्ति हुई ।
होंसला , मेहनत का साथ लिए मैं ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही ।
नित-नए विचारों को आत्मसात कर मैं,अपने अंतर्मन के लक्ष्य को पहचान रही । #OpenPoetry