गज़ब है ये आदमजात उसी पर जुल्म करती है,जिस की कोख से पैदा होकर दुनिया में कदम रखती है. अंधकार है अय्याशी का कुछ ऐसा,मासूम फूलों को तोड़ तोड़ दुनिया खुशियों का ज़िक्र करती है। नासमझी की दास्तां लिखता आया है हर दौर में इंसान, सदियों से ही औरत आज़ादी के लिए तड़पती है। मर मर के जीना तासीर सी है औरत की,चंद लम्हों की खुशियों की खातिर दिल में कितना दर्द भरती है। नूरे चाँद कहने वाले नारी को ओ इश्कजादे,नापाक तेरे हांथों की बेरहमी क्यों न ठहरती है। कब तक रहोगे तुम खोये इस अंधेरे में,ये वही गोद है जो तुमारे सुकून की ख़ातिर एक पल न पलक झपकती है। क्या कसूर है बताओ ज़रा इन महकते फूलों का,मत भूलो तुमारे घर की हस्ती ही इन की खुशबू से महकती है। ©aman6.1 कब तक🇮🇳✍️happy womens day ✍️written by me✍️6.1aman🇮🇳 #international_womens_day ~~【{◆◆कब तक◆◆}】~~ गज़ब है ये आदमजात उसी पर जुल्म करती है,जिस की कोख से पैदा होकर