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"जयशंकर प्रसाद" तेरा प्रेम हलाहल प्यारे, अब तो स

"जयशंकर प्रसाद"


तेरा प्रेम हलाहल प्यारे, अब तो सुख से पीते हैं। 

विरह सुधा से बचे हुए हैं, मरने को हम जीते हैं॥ 

दौड़-दौड़ कर थका हुआ है, पड़ कर प्रेम-पिपासा में। 

हृदय ख़ूब ही भटक चुका है, मृग-मरीचिका आशा में॥ 

मेरे मरुमय जीवन के हे सुधा-स्रोत! दिखला जाओ। 

अपनी आँखों के आँसू से इसको भी नहला जाओ॥ 

डरो नहीं, जो तुमको मेरा उपालंभ सुनना होगा। 

केवल एक तुम्हारा चुंबन इस मुख को चुप कर देगा॥








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  निवेदन
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