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जो टुट गये है सपने,जाने क्यों बनकर अपने लौट आते है

जो टुट गये है सपने,जाने क्यों बनकर अपने
लौट आते हैं, नहीं मंजिल जिन रस्तो पे
क्यों उन पे कदम रुक रुक के बढ़ जाते हैं
कागज के निकले सारे पल चाहत के
ऐसे बदला ऐ मंजर,
कुछ टुट गया मेरे अंदर बिन आहट के।

©muskan bande
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