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***** वर्ण शंकर ***** बाहरी पृवति के कारण ही

   ***** वर्ण शंकर *****
   बाहरी पृवति के कारण ही वर्ण शंकर शब्द उत्पत्ति हुई । 
   वर्ण शंकर शब्द का इतिहास बहुत पुराना है ।
   यह शब्द श्री गीता जी ज्ञान में अर्जुन ने खुद समाज के ज्ञान से  
   एकत्रित ज्ञान को जानकर समझकर ही वर्ण शंकर नाम से 
   उस व भविष्य के समय के लिए समस्त संसार के  लिए  
   बोला था। यह शब्द एक प्रतिक्रिया रुप को दर्शा रहा है।
   श्री कृष्ण जी के समक्ष अपनें जीवन के एकत्रित ज्ञान
   से प्रभावित करने के लिए श्री कृष्ण जी के सामने बोला था।  
हे समस्त पृथ्वी वासियों आपको जानकर खुशी होगी ।
   मुढ़ता का राज समस्त संसार की प्रकृति में बहुत पुराना है। 
  उसी महाभारत काल  में एक मुढ़ता का सबसे बड़ा उदाहरण  
एक वर्ण शंकर शब्द भी बन रहा है।
   समस्त पृथ्वी पर आन्तरिक पृवति चार प्रकार की होती है।
   और चार ही प्रकार के आन्तरिक वर्ण भी होते हैं ।
   बाहरी चार वर्णों से ही समस्त पृथ्वी पर समस्त धर्म,
   समस्त विभिन्न वर्गों में बांट दिया गया है। 
   जो फल आप इस संसार में हम वर्तमान में देख रहे हैं।
  इस समस्त पृथ्वी पर यह फल वर्ण शंकर शब्द
 का ही एक फल है।
  वर्ण शंकर ‌का‌ विराट रूप सन 2700 में देखने।
   को मिलेगा इस पृथ्वी पर इसका भी एक कारण हैं ।
समस्त पृथ्वी वासियों ।

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