White वर्षों पहले घर था बना अब सिर्फ़ बचा मकान भीतर जिसके चल रही अब, रिश्तों की दुकान मर्यादाएं हर बंधन की धागों पर हैं टंगी हुई मन के भीतर द्वेष भरा है पर, चेहरों पर मुस्कान भावनाएं संबंधों की हर रोज हैं तुल रहीं बाजारू होते रिश्तों में बस, दिखलावे का सम्मान निजी हित के खातिर छल-कपट हैं कर रहे उछाल रहे सबकी इज़्ज़त क्या कुल, क्या खानदान ©Kirbadh #relation