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कश्ती है कागज की ढेरों उम्मीद भरी, यही तो है जिंदग

कश्ती है कागज की ढेरों उम्मीद भरी,
यही तो है जिंदगी मेरी।
डूबने से पहले काम आऊं किसी के,
यही आरजू छोटी सी मन में धरी।।
रफ्ता रफ्ता हकीकत जान चुका,
जिंदगी चार दिन की तेरी मेरी।
नफरत संजोए बैठे बेवजह रोए बैठे,
किस ओर बहे यह जिंदगी हमारी।।
पलट कर देख क्या पाया, 
झोंक दी सांसे सारी पाई यह दुनियादारी।
उजालों की तलाश में जिंदगी गंवाई,
हर बार उम्मीद खत्म हुई तेरी मेरी।।
कब तक चले नाजुक कश्ती जिंदगी की,
कुछ नेकी से सवर जाए पूरी की पूरी।
कश्ती है कागज की ढेरों उम्मीद भरी,
यही तो है जिंदगी मेरी.....

©Yogendra Nath Yogi
  #kashti#कश्ती