ज़िंदगी (अनुशीर्षक में पढ़ें) विरोधाभास कविता ज़िंदगी जिंदगी है सुख का बिछौना, तो दुःख की कंटीली सेज भी है खुशियों से है ये भरपूर, तो ग़मों से भी पड़ता वास्ता रोज़ ही है