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बस यही कुछ बातें बिखरती शामों में महफ़िल सजा लेती ह

बस यही कुछ बातें बिखरती शामों में महफ़िल सजा लेती है। जाम होता नहीं हाथ में और यादों से बहका जाती है। होश में रहकर मदहोशी का समा बन जाता है। बस क्या कहूं कि तेरी भूली बिसरी बातों से गुफ़्तुगू करने का एक नया बहाना मिल जाता है।

( कैप्शन में पढ़ें) एक अजनबी बनकर आया था वो मेरी ज़िंदगी में। 
वही इंसान जिसे "जाना पहचाना" अजनबी कहकर पन्नों पे उतारती हूँ आजकल। कभी लिख देती हूं दास्तां हमारी पहली मुलाक़ात की। कभी वो पहली तक़रार की बहस लिख देती हूं और कभी अपनी रूठी तक़दीर को ना मनाने की ज़िद लिख देती हूं। कभी कोसती हूं ख़ुदा को तो कभी खुद को ही बुरा भला कह देती हूं। इल्ज़ाम लगाती हूं उसपर और दो पल में मिटा देती हूं वो टीस, उसकी नादानी को लिख कर। कहते है हम अपने जीवन काल में ऐसे लोगों से अक़्सर मिलते है जो अपनी छाप छोड़ जाते है। ये भी उन्हीं में से एक था पर ख़ास बन गया था या यूं कहूँ की है। हाँ, है वो ज़िंदा मेरे ज़ेहन में, छुपा हुआ सा। मिलने आता है रोज़ मुझसे, ग़ुरूर से कहता है," हो गई मेरी आदी? कहता था ना मैं तुमसे कई बार की मैं इंसानों के दिमाग से खेलता हूं। तुम्हें क्या अपना हुनर दिखाऊँ?" जिसपर में कह देती थी, "नहीं, मुझे इस जाल में, असमंजस में धकेलना मत। मुश्किल से तो संभल पाई हूं, बस तुम्हारी मेहरबानियां रही है।" ये सुन कर वो ज़ोर से हँस पड़ता। और मैं? बस मुँह बनाती रह जाती। महीने बीतते गए और मैं ग़लतफ़हमी के बवंडर में झुलसती गई। कभी लगा ही नहीं कि वो मुझे भी सिर्फ़ आज़मा रहा है। दोस्ती तो शायद कभी थी ही नहीं या यूं कहूँ की शायद उसने कभी दोस्त समझा ही नहीं। यकीन था मुझे की वो मुझे कभी मानसिक रूप से बर्बाद ना करेगा। इतना भरोसा करती थी। खैर! इस अजनबी और जाने पहचाने अजनाबी तक के सफ़र में जो कुछ घटा,चाहे वो चार मीठी बातें हो, कुछ मोहब्बत जैसे जज़्बात हो और पक्की दोस्ती के भ्रम से निकल कर सच्चाई से अवगत कराती वो कड़वी यादें। चाहे वो शर्मा के गुदगुदाने वाले एहसास हो या चुभते काँच से टूटे हिस्से हो। घाव जो अब सूखकर हँसना चाह रहें है पर ये ज़ेहन में दफ़न तेरे तमाम वार याद आते है जो प्यार से लगते थे। बस यही कुछ बातें बिखरती शामों में महफ़िल सजा लेती है। जाम होता नहीं हाथ में और यादों से बहका जाती है। होश में रहकर मदहोशी का समा बन जाता है। बस क्या कहूं कि तेरी भूली बिसरी बातों से गुफ़्तुगू करने का एक नया बहाना मिल जाता है।

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बस यही कुछ बातें बिखरती शामों में महफ़िल सजा लेती है। जाम होता नहीं हाथ में और यादों से बहका जाती है। होश में रहकर मदहोशी का समा बन जाता है। बस क्या कहूं कि तेरी भूली बिसरी बातों से गुफ़्तुगू करने का एक नया बहाना मिल जाता है।

( कैप्शन में पढ़ें) एक अजनबी बनकर आया था वो मेरी ज़िंदगी में। 
वही इंसान जिसे "जाना पहचाना" अजनबी कहकर पन्नों पे उतारती हूँ आजकल। कभी लिख देती हूं दास्तां हमारी पहली मुलाक़ात की। कभी वो पहली तक़रार की बहस लिख देती हूं और कभी अपनी रूठी तक़दीर को ना मनाने की ज़िद लिख देती हूं। कभी कोसती हूं ख़ुदा को तो कभी खुद को ही बुरा भला कह देती हूं। इल्ज़ाम लगाती हूं उसपर और दो पल में मिटा देती हूं वो टीस, उसकी नादानी को लिख कर। कहते है हम अपने जीवन काल में ऐसे लोगों से अक़्सर मिलते है जो अपनी छाप छोड़ जाते है। ये भी उन्हीं में से एक था पर ख़ास बन गया था या यूं कहूँ की है। हाँ, है वो ज़िंदा मेरे ज़ेहन में, छुपा हुआ सा। मिलने आता है रोज़ मुझसे, ग़ुरूर से कहता है," हो गई मेरी आदी? कहता था ना मैं तुमसे कई बार की मैं इंसानों के दिमाग से खेलता हूं। तुम्हें क्या अपना हुनर दिखाऊँ?" जिसपर में कह देती थी, "नहीं, मुझे इस जाल में, असमंजस में धकेलना मत। मुश्किल से तो संभल पाई हूं, बस तुम्हारी मेहरबानियां रही है।" ये सुन कर वो ज़ोर से हँस पड़ता। और मैं? बस मुँह बनाती रह जाती। महीने बीतते गए और मैं ग़लतफ़हमी के बवंडर में झुलसती गई। कभी लगा ही नहीं कि वो मुझे भी सिर्फ़ आज़मा रहा है। दोस्ती तो शायद कभी थी ही नहीं या यूं कहूँ की शायद उसने कभी दोस्त समझा ही नहीं। यकीन था मुझे की वो मुझे कभी मानसिक रूप से बर्बाद ना करेगा। इतना भरोसा करती थी। खैर! इस अजनबी और जाने पहचाने अजनाबी तक के सफ़र में जो कुछ घटा,चाहे वो चार मीठी बातें हो, कुछ मोहब्बत जैसे जज़्बात हो और पक्की दोस्ती के भ्रम से निकल कर सच्चाई से अवगत कराती वो कड़वी यादें। चाहे वो शर्मा के गुदगुदाने वाले एहसास हो या चुभते काँच से टूटे हिस्से हो। घाव जो अब सूखकर हँसना चाह रहें है पर ये ज़ेहन में दफ़न तेरे तमाम वार याद आते है जो प्यार से लगते थे। बस यही कुछ बातें बिखरती शामों में महफ़िल सजा लेती है। जाम होता नहीं हाथ में और यादों से बहका जाती है। होश में रहकर मदहोशी का समा बन जाता है। बस क्या कहूं कि तेरी भूली बिसरी बातों से गुफ़्तुगू करने का एक नया बहाना मिल जाता है।

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