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तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती, जब तेरी लिखी किता

तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती,
जब तेरी लिखी किताब भी कुछ बोलती।
तेरी हर बातें सुनाई देती,
जब दीवार भी तेरे शब्दों से गूंजती।
तेरी हर आहट महसूस होती,
जब भी सोफ़ा की सीट  दबती  ।
तेरी बिन चाय की प्याली लगती,
जैसे वह भी अकेले चुस्की ना ले पाती।
फुल जो फूलदान में रखती ,
खिलते तो थे लेकिन उनकी खुशबू ना महकती।
तेरे बिन इस कमरे की रौनक में कमी सी थी,
फिर भी तेरे ही यादों में में इसमें कैद सी थी। तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती,
जब तेरी लिखी किताब भी कुछ बोलती।
तेरी हर बातें सुनाई देती,
जब दीवार भी तेरे शब्दों से गूंजती।
तेरी हर आहट महसूस होती,
जब भी सोफ़ा की सीट  दबती  ।
तेरी बिन चाय की प्याली लगती,
जैसे वह भी अकेले चुस्की ना ले पाती।
तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती,
जब तेरी लिखी किताब भी कुछ बोलती।
तेरी हर बातें सुनाई देती,
जब दीवार भी तेरे शब्दों से गूंजती।
तेरी हर आहट महसूस होती,
जब भी सोफ़ा की सीट  दबती  ।
तेरी बिन चाय की प्याली लगती,
जैसे वह भी अकेले चुस्की ना ले पाती।
फुल जो फूलदान में रखती ,
खिलते तो थे लेकिन उनकी खुशबू ना महकती।
तेरे बिन इस कमरे की रौनक में कमी सी थी,
फिर भी तेरे ही यादों में में इसमें कैद सी थी। तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती,
जब तेरी लिखी किताब भी कुछ बोलती।
तेरी हर बातें सुनाई देती,
जब दीवार भी तेरे शब्दों से गूंजती।
तेरी हर आहट महसूस होती,
जब भी सोफ़ा की सीट  दबती  ।
तेरी बिन चाय की प्याली लगती,
जैसे वह भी अकेले चुस्की ना ले पाती।

तुम्हारे नहीं होने की कमी खिलती, जब तेरी लिखी किताब भी कुछ बोलती। तेरी हर बातें सुनाई देती, जब दीवार भी तेरे शब्दों से गूंजती। तेरी हर आहट महसूस होती, जब भी सोफ़ा की सीट दबती । तेरी बिन चाय की प्याली लगती, जैसे वह भी अकेले चुस्की ना ले पाती।