राह मेरी भिन्न हैं, पर तुम भी निर्भीक नहीं। मेरी क्षमता से तुम्हारी तीव्रता कम-अधिक नहीं। जीत यह तुम्हारी है, तुम बिना ये तय नहीं। ध्यान दो, तुम तुम ही हो, हे मित्र, तुम मै नहीं! ( पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े...!) राह मेरी भिन्न हैं, पर तुम भी निर्भीक नहीं। मेरी क्षमता से तुम्हारी तीव्रता कम-अधिक नहीं। मैं व्यथा की बेड़ियाँ तो तुम गरल हुए सखा, हर घड़ी अब हो समानता