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राह मेरी भिन्न हैं, पर तुम भी निर्भीक नहीं। मेरी क

राह मेरी भिन्न हैं,
पर तुम भी निर्भीक नहीं।
मेरी क्षमता से तुम्हारी
तीव्रता कम-अधिक नहीं।

जीत यह तुम्हारी है,
तुम बिना ये तय नहीं।
ध्यान दो, तुम तुम ही हो,
हे मित्र, तुम मै नहीं!

( पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े...!) राह मेरी भिन्न हैं,
पर तुम भी निर्भीक नहीं।
मेरी क्षमता से तुम्हारी
तीव्रता कम-अधिक नहीं।

मैं व्यथा की बेड़ियाँ
तो तुम गरल हुए सखा,
हर घड़ी अब हो समानता
राह मेरी भिन्न हैं,
पर तुम भी निर्भीक नहीं।
मेरी क्षमता से तुम्हारी
तीव्रता कम-अधिक नहीं।

जीत यह तुम्हारी है,
तुम बिना ये तय नहीं।
ध्यान दो, तुम तुम ही हो,
हे मित्र, तुम मै नहीं!

( पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े...!) राह मेरी भिन्न हैं,
पर तुम भी निर्भीक नहीं।
मेरी क्षमता से तुम्हारी
तीव्रता कम-अधिक नहीं।

मैं व्यथा की बेड़ियाँ
तो तुम गरल हुए सखा,
हर घड़ी अब हो समानता
amargupta4255

amar gupta

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