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उम्र के एक पड़ाव के बाद.. हमारे सभी कृत्य मर्यादि

उम्र के एक पड़ाव के बाद.. 
हमारे सभी कृत्य मर्यादित होने चाहिए,
समाज की इच्छानुरूप...
हमे ढल जाना चाहिए।
नीरस सागर में चुटकी भर रस ढूंढकर..
संपूर्ण जीवन गुजार देना चाहिए।


छोड़ो जी, ये अनुशासन की बातें...
अपनी इच्छाओं को भविष्य की गठरी में डाल...
जो तुम जुते जा रहे हो,
नहीं जानते... अपने जीवन के सुनहरे पल भी खोते जा रहे हो।

अब हर दिन थोड़ा स्वयं के लिए जीवित होकर देखो...
कोई मशीन नहीं हो... अपनी भावनाओं को भी सहेजो,
दो पल खुशी के निकालो...
खुद को खुद से मिलने दो... मन को थोड़ा खुलने दो।

खूंटे तोड़ जानवर भी भागते हैं... बेवजह 10 मिनिट टहलकर तो देखो,
तुम अब भी वही हो... निकलो मन के जालों से,
आओ जरा बाहर.... धूप छांव सर्द बरसात को...
बचपन की तरह फिर महसूस करके देखो।

©Akarsh Mishra मर्यादाएं और जीवन
उम्र के एक पड़ाव के बाद.. 
हमारे सभी कृत्य मर्यादित होने चाहिए,
समाज की इच्छानुरूप...
हमे ढल जाना चाहिए।
नीरस सागर में चुटकी भर रस ढूंढकर..
संपूर्ण जीवन गुजार देना चाहिए।


छोड़ो जी, ये अनुशासन की बातें...
अपनी इच्छाओं को भविष्य की गठरी में डाल...
जो तुम जुते जा रहे हो,
नहीं जानते... अपने जीवन के सुनहरे पल भी खोते जा रहे हो।

अब हर दिन थोड़ा स्वयं के लिए जीवित होकर देखो...
कोई मशीन नहीं हो... अपनी भावनाओं को भी सहेजो,
दो पल खुशी के निकालो...
खुद को खुद से मिलने दो... मन को थोड़ा खुलने दो।

खूंटे तोड़ जानवर भी भागते हैं... बेवजह 10 मिनिट टहलकर तो देखो,
तुम अब भी वही हो... निकलो मन के जालों से,
आओ जरा बाहर.... धूप छांव सर्द बरसात को...
बचपन की तरह फिर महसूस करके देखो।

©Akarsh Mishra मर्यादाएं और जीवन