जाने क्यूँ दिल का हॉल आज खराब है उसकी आँखों से छलकता जैसे शराब है मैं पहले कभी इतना बेख़ुद ना हुआ था आज उससे मिलने को हम बेताब है क्या तारीफ करे साहब हम उसकी आँखे में काजल जैसे आफताब है कैसे ना सुनना चाहूँ उससे नाम मैं अपना होठ उसके मानो जैसे फूल गुलाब है मैंने इजहार किया था एक रोज उसको उसकी हँसी मेरे सारे सवालों का जवाब है !! -© नितेश मिश्रा