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*दर्द कागज़ पर,* *मेरा बिकता रहा,* *मैं

*दर्द कागज़ पर,* 
          *मेरा बिकता रहा,*

*मैं बैचैन था,* 
          *रातभर लिखता रहा..*

*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*

*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*

*अकड होती तो,* 
          *कब का टूट गया होता,*

*मैं था नाज़ुक डाली,* 
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*

*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*

*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई से सीखता रहा..!!*

©Bhaskar Pappu मेरा दर्द बाजारों में बिकता रहा...
*दर्द कागज़ पर,* 
          *मेरा बिकता रहा,*

*मैं बैचैन था,* 
          *रातभर लिखता रहा..*

*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*

*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*

*अकड होती तो,* 
          *कब का टूट गया होता,*

*मैं था नाज़ुक डाली,* 
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*

*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*

*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई से सीखता रहा..!!*

©Bhaskar Pappu मेरा दर्द बाजारों में बिकता रहा...