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प्रारंभिक शिक्षा Read Caption मुझे ऐसा लगता

प्रारंभिक शिक्षा






Read Caption मुझे ऐसा लगता है कि नर्सरी वह शिशु श्रेणी के बालकों को 48 से 55 या इससे उपर की महिलाओं को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए । इस उम्र में महिलाए दादी-नानी की भूमिका में आ जातीं है जिससे उनमें धैर्य व सहनशीलता बढ़ जाती है जो कि छोटे बच्चों के लिए जरूरी होता है।यहाँ तक आते- आते स्त्री जीवन की बहुत सी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी होतीं है।जिससे उसे जल्दी से उफत नहीं आती और वो बच्चों की परेशानी धैर्य से जानने  और उसको दूर करने का प्रयास करने में सक्षम हो जाती है तथा जीवन के अनुभवों से बच्चों को संस्कार देती है।

अब जो छोटी उम्र की लड़कियाँ वह महिलाओं पर बहुत सारा बोझ होता है वो परिवार में सबसे लेट सोती है और सबसे पहले उठती है। जल्दी जल्दी काम निपटा कर स्कूल पहुंचती है , कभी पति से झगड़ा कभी सास के टोंचले कभी बच्चों की कोई परेशानी इन सब झंझटो  से वो हैरान-परेशान हो जाती है ।कुछ सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए नौकरी करती है उन्हें बच्चों से खास मतलब नहीं होता।जो घर से परेशान होतीं है वो  सबसे कमजोर कड़ी स्कूल के मासूम बच्चों परअपना गुस्सा उतरती है।
कई बार कुछ बच्चों के पीछे हाथ धो कर पड़ जाती है।जिससे उन बच्चों पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ते देखा है।

🙏🙏  उन लडकिया व महिलाओं से क्षमाप्रार्थी हूँ जो अपना कर्तव्य का सही पालन करतीं है।
अब हर बात के दो पहलू भी तो होते है।
#childeducation #childhood #family #familymean #yqvinayvinayak #yqbaba
प्रारंभिक शिक्षा






Read Caption मुझे ऐसा लगता है कि नर्सरी वह शिशु श्रेणी के बालकों को 48 से 55 या इससे उपर की महिलाओं को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए । इस उम्र में महिलाए दादी-नानी की भूमिका में आ जातीं है जिससे उनमें धैर्य व सहनशीलता बढ़ जाती है जो कि छोटे बच्चों के लिए जरूरी होता है।यहाँ तक आते- आते स्त्री जीवन की बहुत सी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी होतीं है।जिससे उसे जल्दी से उफत नहीं आती और वो बच्चों की परेशानी धैर्य से जानने  और उसको दूर करने का प्रयास करने में सक्षम हो जाती है तथा जीवन के अनुभवों से बच्चों को संस्कार देती है।

अब जो छोटी उम्र की लड़कियाँ वह महिलाओं पर बहुत सारा बोझ होता है वो परिवार में सबसे लेट सोती है और सबसे पहले उठती है। जल्दी जल्दी काम निपटा कर स्कूल पहुंचती है , कभी पति से झगड़ा कभी सास के टोंचले कभी बच्चों की कोई परेशानी इन सब झंझटो  से वो हैरान-परेशान हो जाती है ।कुछ सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए नौकरी करती है उन्हें बच्चों से खास मतलब नहीं होता।जो घर से परेशान होतीं है वो  सबसे कमजोर कड़ी स्कूल के मासूम बच्चों परअपना गुस्सा उतरती है।
कई बार कुछ बच्चों के पीछे हाथ धो कर पड़ जाती है।जिससे उन बच्चों पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ते देखा है।

🙏🙏  उन लडकिया व महिलाओं से क्षमाप्रार्थी हूँ जो अपना कर्तव्य का सही पालन करतीं है।
अब हर बात के दो पहलू भी तो होते है।
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