रूह की गुलेल में जतन का कंकड़ फँसाकर खींच लेता हूँ इक लंबी साँस के जब कंकड़ छूटे, तो सीधा फ़लक का शीशा तोड़ कर ख़ुदा के पैरों में जा गिरे ये मेरा तरीका है दुष्यंत जी... Tabeeiyat se