तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह न जाने क्यू अब खामोश दिखाई देती हैं जूस्तजू जो रहती थी दिल मे न जाने क्यू अब वो छुपी रहती हैं मैं तो आशिक था जन्मो से तुम्हारा पर अब क्यू ये आशिकी बेरूख़ी सी लगती हैं शायद मैं खुद को ही ढ़ूनता था तुममे पर खुद को पाने की कोशिश मुझे अब फ़िजूल लगती है तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह न जाने क्यू अब खामोश दिखाई देती हैं जूस्तजू जो रहती थी दिल मे न जाने क्यू अब वो छुपी रहती हैं मैं तो आशिक था जन्मो से तुम्हारा पर