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बहती नदियों का शोर, बादल बरसे घनघोर..! मेरे दिल क

बहती नदियों का शोर,
बादल बरसे घनघोर..!

मेरे दिल की कश्ती लूट ले गए,
जैसे काले चोर..!

तमस में डूबे ढूँढे राह को,
कैसा है ये दौर..!

जीवन बीते राहगीर फिरे,
न जाने तरीके तौर..!

उजियारे की चाह में पाई,
असफलता की डोर..!

निकले थे मन बहलाने,
हुए सदा ही बोर..!

चमके बिजली रौद्र रूप,
नाचे आँगन में मोर..!

खुशियाँ रही अतिथि पल भर,
गम रहा सदैव मेरी ओर..!

पाना चाहा समुद्री शुक्तिज,
पहुंचे दूजी ओर..!

तैरते रहे इश्क़ में उसके,
मिला न फिर भी छोर..!

हंसी ठिठोली के बीच में,
ग़म की दस्तक अघोर..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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