कितनी उचित हुआ करतीं हैं सेवायें अभियंता की। उस दिन समझ आगया सबकुछ जिस दिन वह दुर्घटना थी।। बड़ी सत्यनिष्ठा से मैं तो अपनी सेवायें करता था। धन्यवाद परमेश्वर का अन्यथा आज तो मैं मरता था।। मेरा वरिष्ठ प्रभारी ही मेरे प्राणों का बना भक्षक था। क्योंकि भेद मैं खोल चुका था घोटाले जो उसका तुरप था। उसी तुरप के पत्ते ने जब उसके सारे भेद गिनाये। लगा मेरी ही लीला हरने धन्य प्रभू ने मुझे बचाया।। धन्यवाद। ©bhishma pratap singh #सच का सामना#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#Horror &Thriller#True Story #EngineerDay