निशब्द हूं निशब्द हूं मैं ये कैसा रुदन छाया है मासूम की अस्मत लूट गया ये कैसा वहशी आया है ना इनको कोई डर किसी का दर्द इन्हें होता ही नहीं मानवता और दया का कोई अंश इनमें होता ही नहीं अबोध नन्नी जान पे ये कैसा कहर बरपाया है निशब्द हूं निशब्द हूं मैं ये कैसा रुदन छाया है।। निशब्द