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लिख कर एक ख़त छोड़ जाऊँगा मैं पढ़ोगे जब ज

लिख   कर  एक   ख़त   छोड़  जाऊँगा  मैं 
पढ़ोगे  जब  जब  बहुत   याद  आऊँगा  मैं 

रहूँगा   क़रीब   ही   महसूस   करना   तुम 
तुमसे   दूर  आख़िर  कहाँ  रह   पाऊँगा  मैं 

सुनो..!  अपने  दर्द  मुझे  दे  दो  सारे  तुम 
लंबे  सफ़र  पर   खाली  कैसे  जाऊँगा  मैं 

उल्फ़त  तो  तुम्हें भी  थी इक  रोज़  मुझसे 
तुम्हारी  तरह   थोड़ी  न  भूल  जाऊँगा  मैं 

मेरी  मौत पर देखो, तुम  आँसू  मत बहाना 
तुम्हें  रोता  देख  कैसे  वहाँ  जी  पाऊँगा मैं 

ये  ग़ज़लें, ये शे'र पढ़ लेना मन हो जब भी 
Id  और  पासवर्ड  text  कर  जाऊँगा  मैं 

मेरी मुहब्बत से, "मुहब्बत" सीख लेना तुम 
अपनी  मुहब्बत   यहीं   छोड़   जाऊँगा  मैं 

एक  पेड़  लगाना, उसे  मेरा  नाम  दे  देना 
तन्हा हो जब आना तुमसे लिपट जाऊँगा मैं 

अच्छा  तो अब अलविदा  कहता है 'प्रशान्त' 
यूँ ही लिखता रहा ग़र तो कैसे मर पाऊँगा मैं

©Prashant Shakun "कातिब"
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लिख   कर  एक   ख़त   छोड़  जाऊँगा  मैं 
पढ़ोगे  जब  जब  बहुत   याद  आऊँगा  मैं 

रहूँगा   क़रीब   ही   महसूस   करना   तुम 
तुमसे   दूर  आख़िर  कहाँ  रह   पाऊँगा  मैं

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