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मंज़िलें तो ओर भी हैं तू एक न समझ सफ़र अभी शुरू ह

मंज़िलें तो ओर भी हैं

तू एक न समझ

सफ़र अभी शुरू हुआ हैं

इसे ठहराव न समझ


अभी तो लंबे कदम चलने है तुझे

अभी तो आया मोड़ है

तू बदलाव न समझ


सफ़र में राहगीर मिलेंगे तुझे

ये भीड़ से भरी दुनिया हैं

कभी खुद को अकेला न समझ


मिले न मिले मंज़िल 

तू कभी परवाह न कर

तू सफ़र का मजा ले

इसे जूते का घिसाव न समझ।


                       ----------------अनुराग वेब
मंज़िलें तो ओर भी हैं

तू एक न समझ

सफ़र अभी शुरू हुआ हैं

इसे ठहराव न समझ


अभी तो लंबे कदम चलने है तुझे

अभी तो आया मोड़ है

तू बदलाव न समझ


सफ़र में राहगीर मिलेंगे तुझे

ये भीड़ से भरी दुनिया हैं

कभी खुद को अकेला न समझ


मिले न मिले मंज़िल 

तू कभी परवाह न कर

तू सफ़र का मजा ले

इसे जूते का घिसाव न समझ।


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