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मुझे थी लालसा, हो कोई बचपन जैसा सहपाठी, बन सके जो

मुझे थी लालसा,

हो कोई बचपन जैसा सहपाठी,
बन सके जो ‘बुढ़ापे’ की लाठी।
समा सकूँ मैं,आलिंगन में उसके, 
मुझसे भले ऊँची, हो क़द काठी॥

माँ बिना माँ सा, जो लाड़ लड़ावे,
तो कभी बाबा जैसा, पाठ पढ़ावे।
कभी करे भाई, बहनों सी शरारत,
तो कभी दोस्तों सा एकांत बँटावे॥

बने कोई छाँव, ‘ज़िन्दगी के धूप’ में,
एक जीवन साथी हो, ‘ईश्वर’ रूप में॥
जिस लिये भटका, नगर नगर ‘रासि’
वो मिला घर पीछे, ‘पेड़’ के स्वरूप में॥
✍🏻@raj__sri #yqdidi
#yqbaba
#yqhindi
#hindi
#kavita
#tree
#nature
#rasi
मुझे थी लालसा,

हो कोई बचपन जैसा सहपाठी,
बन सके जो ‘बुढ़ापे’ की लाठी।
समा सकूँ मैं,आलिंगन में उसके, 
मुझसे भले ऊँची, हो क़द काठी॥

माँ बिना माँ सा, जो लाड़ लड़ावे,
तो कभी बाबा जैसा, पाठ पढ़ावे।
कभी करे भाई, बहनों सी शरारत,
तो कभी दोस्तों सा एकांत बँटावे॥

बने कोई छाँव, ‘ज़िन्दगी के धूप’ में,
एक जीवन साथी हो, ‘ईश्वर’ रूप में॥
जिस लिये भटका, नगर नगर ‘रासि’
वो मिला घर पीछे, ‘पेड़’ के स्वरूप में॥
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