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मेरे ग़ैरों में हरगिज़ वो शामिल नहीं मेरा क़ातिल तो ह

मेरे ग़ैरों में हरगिज़ वो शामिल नहीं
मेरा क़ातिल तो है पर वो क़ातिल नहीं, 

तुम न पीछा करो गुज़रे उस दौर का
राह जो है चुनी उस की मंजिल नहीं, 

सिसकियाँ बंद कमरों में  घुटती मिरी
दो कोई अब दुआ मैं तो बिस्मिल नहीं, 

छोड़ दो  सारा झूठा  जहाँ  देखा है
सब नकाबों में है कोई कामिल नहीं, 

जो दिखाते है खुद को खुदा  है मेरे
कोई उनसे तो  पूछे वो ज़ाहिल नहीं,

©Harish Chander
  #ग़ज़ल #हिंदी 

212 /  212 /212  /212
मेरे ग़ै/रों में हर/गिज़ वो शा/मिल नहीं
मेरा क़ा/तिल तो है/पर वो क़ा/तिल नहीं, 

तुम न पी/छा करो/गुज़रे उस/ दौर का
राह जो/ है चुनी/उस की मं/जिल नहीं,

#ग़ज़ल #हिंदी 212 / 212 /212 /212 मेरे ग़ै/रों में हर/गिज़ वो शा/मिल नहीं मेरा क़ा/तिल तो है/पर वो क़ा/तिल नहीं, तुम न पी/छा करो/गुज़रे उस/ दौर का राह जो/ है चुनी/उस की मं/जिल नहीं,

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