लोकनाट्य नौटंकी शब्द सुनते ही सबके मन में अपने अपने अनुभव के आधार पर कुछ अभी अंकित हो जाती हैं कभी ढोल नगाड़े के साथ मंच पर हो रही प्रस्तुति तो कभी बांसुरी की धुन के साथ यूं ही कुछ लोगों की भीड़ के बीच अपनी कला का प्रदर्शन करते लोगों की टोली नौटंकी कला को संगीत भी कहा जाता है जो कई रूपों में हमारे समाज का हिस्सा बन चुकी है मनुष्य अन्य सभी प्राणियों से अलग इसलिए है क्योंकि उसके अंदर भाव है और वह मनोरंजन चाहता है समय के साथ जैसे-जैसे मनोरंजन के साधन बढ़ते गए नौटंकी का प्रसार कम होता गया डॉ वीरेंद्र कुमार चंद्र सखी ने अपनी पुस्तक संगीत के विवाद आया में एक नौटंकी के विवाद रूपों को दर्शाया है अपने साधनों में इसकी अलग-अलग रूपों कोहबर गीत किया है इसमें संगीत की ऐतिहासिक को विश संप्राण स्थापित किया गया इसके अभाव और विकास क्रम को समझने में यह पुस्तक विशेष रूप से सहायक हो सकती है नौटंकी का नाट्यशास्त्र विवेचन इस पुस्तक की सबसे बड़ी सुदन सुदन सुदन स्वतंत्रता ऐसे लिखे पुस्तक क्योंकि जिस तरह से नौटंकी समाज को प्रतिनिधित्व करती है उसी तुलना में इसे इतना सम्मान नहीं मिला अभी जाता यह वर्ग में इस है रे दृष्टि से देखा बहुत विचारक इसे साहित्य की श्रेणी में रखने से कोई भी कर रहे हैं लेखक ने नौटंकी के काव्य सौष्ठव योजना और इसे देखने वाले सामाजिक प्रतिबिंब तक सभी व्यक्तियों को विस्तार से अपनी पुस्तक में समेटने का प्रयास किया ©Ek villain #लोकनाट्य की कला से परिचय #Love