बेहिस-ओ-हसीं के लहजे-ओ-इसरार पे क़ुर्बान हो गया मैं इश्क़ की तलवार पे खादिम की तवक़्क़ो है इशारा-ए-नज़र फ़ना फ़रहाद होयेगा शीरीं की दरकार पे शिक़ायत है उसे कि तुम आते नहीं पैहम निसार है गुलशन तेरे हुस्न के महकार पे कुछ गिला है क्या? क्यों बातें नहीं करते शुबह है कुछ दिल के साहिब-ए-दय्यार पे मालूम है कुछ किस से बकते हो 'अबीर' के तस्वीर है फ़क़त वहाँ फ़्रेम में दीवार पे बेहिस - जिसे एहसास न हो, इसरार - ज़िद, खादिम - गुलाम, तवक़्क़ो - अभिलाषा, फ़रहाद-शीरीं - लैला मजनू जैसे एक और प्रेमी युगल, निसार - फ़िदा, महकार - खुशबू, दय्यार - रहने वाला #yqdidi #yqbhaijan #yqwriters #yqquotes #yqlife #yqlove #yqaestheticthoughts #yqrestzone